Out beyond the ideas of right-doing or wrong-doing there is a field - I'll meet you there.


Thursday, June 18, 2009

Andheri Madhushala - II

अँधेरी मधुशाला - २

मधुशाला जो जो जाते हैं, सब प्यासे वापस आते हैं
मदिरालय के प्रांगण में टूटे प्याले बिखरे जाते हैं
मदिरालय से मदिरालय फिरने में हम हाला पाते हैं
प्यासे प्याले चूमे इतने, मदिरा ख़ुद बनते जाते हैं

1 comment:

Nishant said...

Awesome

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I is a place-holder to prevent perpetual infinite regress. I is a marker on the road that ends in I not being.